भावार्थ– हे हनुमान् स्वामिन् ! आपकी जय हो ! जय हो !! जय हो !!! आप श्री गुरुदेव की भाँति मेरे ऊपर कृपा कीजिये।
भावार्थ – माता जानकी ने आपको वरदान दिया है कि आप आठों प्रकार की सिद्धियाँ (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व) और नवों प्रकार की निधियाँ (पद्म, महापद्म, शंख, मकर, कच्छप, मुकुन्द, कुन्द, नील, खर्व) प्रदान करने में समर्थ होंगे।
“आपके get more info हाथ में शक्तिशाली बज्र और ध्वजा है और आपके कन्धे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है।”
“श्री राम ने आपको यह कहकर हृदय से आलिंगन कर लिया की तुम्हारा सुयश हजार मुख से ही सराहनीय अनुकर्णीय है।”
व्याख्या – श्री हनुमान चालीसा में श्री हनुमान जी की स्तुति करने के बाद इस चौपाई में श्री तुलसीदास जी ने उनसे अन्तिम वरदान माँग लिया है कि हे हनुमान जी! आप मेरे हृदय में सदैव निवास करें।
“आपके सिवाय आपके वेग-तेज़ को कोई नहीं रोक सकता है, आपकी गर्जना से तीनों लोक तक काँप जाते है।”
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।
व्याख्या – श्री हनुमान जी कपिरूप में साक्षात् शिव के अवतार हैं, इसलिये यहाँ इन्हें कपीश कहा गया।
“आप प्रकान्ड विद्या के निधान है, गुणवान हैं और अत्यन्त कार्य में कुशल होकर श्री राम जी काज करने के लिए सदेव ही आतुर रहते है।”
ध्यान और समर्पण: शिव जी की आरती का पाठ करने से मनुष्य का मन शुद्ध होता है और उसका ध्यान ईश्वर की ओर बढ़ता है.
समझनी है जिंदगी तो पीछे देखो, जीनी है जिंदगी तो आगे देखो…।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥